भारत की दुनिया को देन हैं”उर्दू”

हफीज किदवई,वरिष्ठ संपादक

भारत की दुनिया को जो देन हैं, उसमें से एक बहुत हसीन देन का नाम है “उर्दू” । एक ऐसी ज़बान जो भारत में जन्मी,यहीं जवान हुई और यहीं से उसके असर में दुनिया आई ।

आज जब वर्ल्ड उर्दू डे है, यानि अंतरराष्ट्रीय उर्दू दिवस या यूं कहिए आलमी यौम ए उर्दू तो वह बात करनी चाहिए,जो इस ज़बान के रँग और उसकी ख़ुशबू को बतलाए ।

यूँ तो अल्लामा की यौम ए पैदाइश से इसे जोड़ा गया है, ज़ाहिर है उर्दू ज़बान की वह ताक़त थे । किसी ज़बान में ही फ़लसफ़े के असर को देखना हो तो उर्दू उसके लिए काफ़ी है और अल्लामा की कलम उसकी शिनाख़्त करती है । उर्दू तमाम ज़बानों में बहुत नाज़ुक ज़बान है बिल्कुल चाय की तरह,चाय भी बहुत नाज़ुक ख्याल होती है ।

अगर आपने ग़लती से भी चाय के नज़दीक कोई महक वाली चीज़ रख दी,तो वह उसका असर ले लेती है । ठीक ऐसे ही उर्दू है अगर इसका एक हर्फ़ अपने बरतने के अंदाज़ से ज़रा भी मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में बोला जाए,तो यह उस बदले हुए अंदाज़ की हो जाती है, जो कानों में खटकने लगती है ।

इसलिए उर्दू को लेकर बहुत से लोग, बहुत नफ़ासत बरतते हैं । एक एक हर्फ़ के ज़ोर, नुक़्ते पर नज़र रखते हैं और ज़रा सी भी मिलावट पर बोल उठते हैं कि यह अल्फ़ाज़ दुरुस्त नही है ।

मुझे किसी भी भाषा को लेकर इतनी संजीदगी अच्छी लगती है । बड़े से बड़े लोगों पर कोई भी लड़का जो ज़बान को सही बरतने का आदी है, टोक देता है । यह ज़रूरी है क्योंकि उर्दू बहुत नाज़ों से पली ज़बान है,यह इतनी शीरीं है कि एक से एक खड़ूस ज़हनियत का इंसान भी फ़रिश्ता नज़र आने लगेगा । जिनके ज़हन से बदबू आए मगर ज़बान ऐसी की फूल झड़ें, यह है उर्दू की ख़ूबसूरती ।

बहुत लोगों को यह कठिन जान पड़ेगी मगर ज़रा से ध्यान भर दे लेने से यह आपमें घुल जाएगी । स्कॉटिश जॉन गिलक्रिस्ट जब भारत आए,तो बंगाल तक जाने में ही उन्होंने उर्दू सीख ली थी । उर्दू,यानि आम बोलचाल की ज़बान मगर इसको समझने के लिए कोई लिटरेचर नही था । बंगाल में उन्होंने एक जगह बनाई,जहां इन ज़बानों पर काम हो,इसे गिलक्रिस्ट का मदरसा कहकर पुकारा गया,जो बाद में दुनिया भर में मशहूर फोर्ट विलियम कॉलेज बन गया ।

यहां इसका ज़िक्र इसलिए ज़रूरी है कि जिस ज़बान की शिनाख़्त हम आज करके याद कर रहे हैं,उसे बढ़ाने में किसका कितना हिस्सा है । आप यह समझ लीजिए,हर वह ज़बान, हर वह इंसान, हर वह हरकत,बहुत अज़ीम है, जिसे अलग अलग ख़्याल, रँग,सोच के लोगों ने सींचा हो और हमारी उर्दू इस सोच का जीता जागता अक़्स है ।

वैसे उर्दू ज़बान के रसमुलख़त यानि लिपि या स्क्रिप्ट को लेकर हमारे बहुत से बुज़ुर्ग बहुत लंबी चौड़ी बहस कर चुके हैं और इसी नतीजे पर पहुँचे की इसका यही रसमुलख़त ठीक है ।

सज्जाद ज़हीर साहब का कहना था कि हमें उर्दू के लिए रोमन स्क्रिप्ट इस्तेमाल करनी चाहिए,जिसपर बड़ी बहस हुई मगर अब के जो हालात हैं, लगता है कि वह बहुत दूरंदेश थे । आज भी रेख़्ता जैसे प्लेटफॉर्म पर उर्दू अपनी मौजूदा स्क्रिप्ट से अलग रोमन और देवनागरी में ज़्यादा पढ़ी जाती है । फिर भी हम इस बहस में नही पड़ना चाहते,बस यह कहना चाहते हैं कि इस ज़बान को देखिये,इसके हर अंदाज़ पर आवामी बहसें हुई हैं । इसकी डिशनरी और सीखने के शुरुआती सफ़े अगर गिलक्रिस्ट ने बनवाए हैं, तो अल्लामा ने इसमें फ़लसफ़े को गूंथा है । आम सी गलियों के आम से लोगों ने इस ज़बान में कलाम कहकर इसे बहुत सींचा है ।

इस ज़बान का कमाल देखिये,यह बहुत तंग गलियों में अदब को रचती है तो उसी वक़्त महल में अपना जलवा बिखेरती है । कोई तांगेवाला इस ज़बान में शेर कहता है तो उस दौर का बादशाह भी ऊंची गांव तकिया पर बैठकर इस ज़बान में शेर की गिरह बांधता है ।

यह ज़बान अपने रँग और असर में इस क़दर जवान है कि हर एक उसके इठलाने पर  झूम उठता है । यह ज़बान रेत के मानिंद मुट्ठी में तो आती है मगर एक ही झटके में निकल भी जाती है ।

ख़ैर आज जब नेशनल उर्दू डे है, तो कोशिश कीजिये इस ज़बान को सीखिए,इसे महसूस कीजिये,इससे मोहब्बत कीजिये,इसे ताक़त दीजिये, अपनाइए,आती हो तो और निखारिये,हमारी ज़िम्मेदारी है कि आने वाली नस्लों तक इसकी मिठास वैसे ही पहुँचाए, जैसे हमें मिली है ।

यह बात हम देवनागरी लिपि में लिख रहे हैं मगर ज़बान का असर देखिये,वह हर स्क्रिप्ट में अपनी मिठास महसूस तो करवा ही देती है । आप सबको भारत में जन्मी इस ख़ूबसूरत ज़बान की बहुत बहुत मुबारकबाद ।

हमें फ़ख़्र करना चाहिए कि यह हमारी नायाब ज़बान है, जिसके असर में हर इंसान आ सकता है बशर्ते आप में नफ़रत का रोग न लगा हो…हालांकि हमने एक से एक ज़हरीले इंसान को इस शीरीं ज़बान में कलाम करते देखा है मगर फिर भी यह इसकी ताक़त कहिए कि उनका ज़हर जल्द ज़ाहिर नही होता ।

वैसे तो मेरा मानना है कि इसे सिर्फ़ ज़बान समझकर इसकी अहमियत दें,जैसे इंसान को सिर्फ़ इंसान समझा जाए मगर अब इसपर हमले हो रहे हैं, तो थोड़ी मोहब्बत ज़्यादा करनी पड़ती है । इस वक़्त उर्दू को इसकी ज़रूरत है, इसे मज़बूत कीजिये और खूब मुबारकबाद भी दीजिये…

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