केवल 4 बात का भी जवाब नहीं दे पाएंगे गृह मंत्री : ओवैसी

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नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक  पेश किया | इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है |

लोकसभा में इस विधेयक के पेश होने के बाद विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया | एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसका विरोध किया, उन्होंने कहा कि यह बिल मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है |

लोकसभा में उन्होंने कहा, ‘मैं सिर्फ चार प्वाइंट्स पर ही बोलूंगा, समय नहीं है, और ये लोग (सत्तापक्ष) जवाब भी नहीं दे पाएंगे | पहली बात है, सेक्युलरिज़्म इस मुल्क के बेसिक स्ट्रक्चर का हिस्सा है, केशवानंद भारती (केस) में कहा गया, (संविधान के) अनुच्छेद 14 में कहा गया | दूसरी बात, हम इसलिए इस (बिल) की मुखाल्फत कर रहे हैं, क्योंकि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, यह मनमाना है, शायरा बानो (केस) में, नवतेज जौहर (केस) में इसका ज़िक्र है |

इसके अलावा बोम्मई, केशवानंद भारती भी हैं | तीसरा, हमारे मुल्क में एकल नागरिकता का विचार लागू है | आप (सत्तापक्ष) यह बिल लाकर सर्बानंद सोनोवाल सुप्रीम कोर्ट केस का उल्लंघन कर रहे हैं | आप इस मुल्क को बचा लीजिए |’

कांग्रेस ने इस विधेयक को मुस्लिमों के खिलाफ बताया है, लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि यह बिल कहीं से भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है |

इस विधेयक के कारण पूर्वोत्तर के राज्यों में व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं और काफी संख्या में लोग तथा संगठन विधेयक का विरोध कर रहे हैं | उनका कहना है कि इससे असम समझौता 1985 के प्रावधान निरस्त हो जाएंगे जिसमें बिना धार्मिक भेदभाव के अवैध शरणार्थियों को वापस भेजे जाने की अंतिम तिथि 24 मार्च 1971 तय है |

प्रभावशाली पूर्वोत्तर छात्र संगठन (नेसो) ने क्षेत्र में दस दिसम्बर को 11 घंटे के बंद का आह्वान किया है |

नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसम्बर 2014 तक भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध शरणार्थी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी |यह विधेयक 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का चुनावी वादा था | भाजपा नीत राजग सरकार ने अपने पूर्ववर्ती कार्यकाल में इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया था और वहां पारित करा लिया था |

लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में प्रदर्शन की आशंका से उसने इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया | पिछली लोकसभा के भंग होने के बाद विधेयक की मियाद भी खत्म हो गयी |

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