बहु बेगम
हफीज किदवई, मुख्य संपादक
बहु बेगम बूढ़ी हो चुकी थी मगर आवाज़ में गज़ब की खनक थी । हमेशा तांबे के नक्काशीदार कटोरे में पानी पीतीं । एक रोज़ अपने पूरे वजूद को लगाकर वह चीख़ रहीं थीं । किसी ने उनकी इतनी तेज़ आवाज़ नवाब साहब के गुज़रने के बाद से नही सुनी थी ।
बहु बेगम ने चीख़ कर कहा यह स्टील का गिलास कौन ले आया है हमारी दहलीज़ पर।
तुम कमबख़्तो को नही पता की स्टील की झूठी और आम चमक हमारी ज़मीदारी को निगल जाएगी। जब वोह चीख़ रही थी तो किसी को भी नही पता था मामूली स्टील, ज़मींदारी के गुरूर को कैसे तोड़ेगा।
देखते देखते ताम्बे और पीतल के बर्तनों की जगह स्टील और एल्युमिनयम ने ले ली।कहर तो तब टूटा जब चीनी और ताम चीनी की खूबसूरत नक्काशीदार प्लेटें बाजार में पहुँच गई या कूड़े के ढेर में और उनकी जगह स्टील ने लेली।बेगम ने पूरी हुक़ूमत को ताम्बे की तरह पिटते देखा।पीतल की तरह घिसते देखा।रौब और गुरूर को बार बार चीनी के बर्तन सा टूटते देखा।
एक दिन बेगम के कान में पड़ा की चना महंगा हो गया है।इतना महंगा की उसने गेंहूँ को भी पिछाड़ दिया है।गेहूँ से महँगे चने का तसव्वुर बेगम की सल्तनत की आखरी कील थी।वोह मुरझाई हुई,पान की बची इकलौती गिलौरी मुँह में रखती हुईं बोली”आह, मोटे अनाज ने महीन अनाज को पिछाड़ दिया है।यह हमारे डूबने की आखरी निशानी हैं।
अब हर चीज़ ढहने पर सिर्फ सब्र करना क्योंकि तुम सबके लिए हुक़ूमत अब बेईमानी हो चुकी है, बताओ मोटा अनाज महंगा हो गया” इतना कहते हुए बेगम ने वही तख्त पर लुढ़क कर दिखा दिया की वाक़ई पुरानी दहलीज़ उखड़ चुकी है।बेगम के जिस्म पर उनका खुद का बुना कामदानी का सफ़ेद दुपट्टा डाला गया।
कब्रिस्तान भी उन्हें उस वक़्त मयस्सर एक स्टील के पलँग पर ही ले जाया गया। आखिर स्टील ने अपनी वफ़ादारी निभाई और ज़मीदारी का गुरूर कब्रिस्तान तक पहुँचा कर पूरी कोठी को अपना लिया। दुनिया ने देखा तांबे के पिटते ही कैसे स्टील से हल्के हल्के लोग बड़ी बड़ी इमारते तोड़कर एहसास दिलाते रहे कि अब तांबे का युग खत्म हुआ ।
अब स्टील चमकेगा ही और तांबे को सब्र करना होगा । जो नींव की एक बलिश्त ज़मीन के लिए मार काट मचा देते थे,वह बड़ी बड़ी ऐतिहासिक इमारते गंवाकर खामोश क्यों हैं, क्योंकि तांबे को सब्र का ताबीज़ पहना दिया गया है…