आदिवासी नायक बिरसा मुंडा !
हफीज किदवई, मुख्य संपादक
बेहद खूबसूरत स्कूल है,इतना आकर्षक और विशाल की उसकी कल्पनाएँ मन में हिलोरे पैदा कर रही हैं।इंग्लिश ऐसी की वारे जाऊँ।यहीं स्कूल की दहलीज़ से खूबसूरत चमकता हुआ सुनहरा भविष्य दिख रहा है।आने वाला कल जिसमे मेरी टेबल पर ब्रेड एंड बटर के साथ इंग्लिश का रुतबेदार अख़बार होगा।चार नौकर होंगे जो मुँह से निकले लफ़्ज़ को ऐसे लपकेंगे जैसे उनकी किस्मत बदलने वाली हो।यह सब किसे नही अच्छा लगता होगा।यह कल्पनाएं किसे नही ललचाएँगी।मगर जो इन सबको एक झटके में तोड़ दे।
जो सुनहरे स्कूल की शक्ल से मुँह फेर ले।जो बटर एंड ब्रेड से हाथ हटाकर धनुष थाम ले।जो अपनी भूख में दूसरों की भूख की तड़प देखे।जिसका भरा हुआ पेट,अपनों की ख़ाली थाली के तसव्वुर भर से बेचैन कर दे।जिसके गले में बिलखते बच्चों को देखकर निवाले फंसने लगे।जो अपने कमज़ोर,परेशान,बेसहारा,पिछड़े लोगों की सेवा करते करते 24 साल की मामूली उम्र में ही उस पूरे समुदाय का भगवान बन जाए।वही तो है, जिसपर आज लिखा जाएगा।जिसपर कल भी लिखा जाएगा।
सर उठाकर देखिये।रोते बिलखते नेता बहुत मिल जाएँगे।गर्दन घुमाकर कर देखिये डराने वालों की कतार लगी हुई है।एक बार दिल में झाँक कर देखिये,तब दिल कहेगा की दोस्त तुम ख़ाली हो।तुम्हारे पास कोई लीडर नही,जो दिल के ख़ौफ़ को दूर करे।जो तुम्हे डराए नही बल्कि बढ़ाए।जो तुम्हारे लिए संघर्ष करते हुए सलाखों में दम तोड़ दे।दोस्त तुम्हारे पास कोई बिरसा मुंडा नही है।
आज यह सारी खूबियाँ।आदिवासी समाज को लोहा बनाने की अद्भुत कला।एक एक आदिवासी के दिल में यह डालना की तुम हो तो सब है, वरना कुछ भी नहीं।
बिरतानियों के दिल में जो ख़ौफ़ बिरसा मुंडा ने भरा वोह कौन कर सकता है।आदिवासियों को जो हिम्मत दी वोह कौन कर सकता है।अपना सुनहरा कल छोड़ संघर्ष में कुर्बान बिरसा मुंडा की आज पैदाइश है।आज उनको याद करके संघर्ष सीखने का दिन है।पूरे समाज को कैसे आगे लाए,कैसे उनकी साँसों की हिफाज़त करें,सीखने का दिन है। थोड़े थोड़े बिरसा हो जाओ दोस्तों,हम सब साथ चलकर कल का बेहतरीन भारत गढ़ेंगे।